📚 निवेशकों को नई तेल व गैस नीति से लुभाने की कोशिश
सरकार ने तेल एवं गैस खोज क्षेत्र में निजी और विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए इससे जुड़ी नीति में अहम बदलाव किए हैं। नई नीति के तहत सरकार नए एवं कम खोजे गए क्षेत्रों में हाइड्रोकार्बन उत्पादन पर संबंधित कंपनी से लाभ में हिस्सा नहीं मांगेगी। हर तरह के बेसिन के लिए एक समान अनुबंध वाली दो दशक पुरानी नीति में बदलाव करते हुए नई नीति में अलग-अलग क्षेत्रों के लिए अलग-अलग नियम बनाए गए हैं। इसके तहत पहले से उत्पादन वाले क्षेत्रों और नए क्षेत्रों के लिए नियम अलग-अलग रहेंगे। आधिकारिक अधिसूचना के अनुसार उत्पादकों को भविष्य में बोली के दौरान तेल एवं गैस के लिए विपणन और कीमत (मार्केटिंग एंड प्राइसिंग) के मामले में आजादी होगी। इस प्रक्रिया में इस बात से कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा कि बेसिन कैसा है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 28 फरवरी को नियम में बदलाव को मंजूरी दी थी। इसमें कहा गया है कि भविष्य में सभी तेल एवं गैस क्षेत्र या ब्लॉक का आवंटन प्राथमिक रूप से खोज कार्यों को लेकर जताई गई प्रतिबद्धता के आधार पर किया जाएगा।नए नियम के तहत कंपनियों को श्रेणी-एक के अंतर्गत आने वाले सेडीमेंटरी बेसिन से होने वाली आय का एक हिस्सा देना होगा। इसमें कृष्णा गोदावरी, मुंबई अपतटीय, राजस्थान या असम के क्षेत्र शामिल हैं, जहां वाणिज्यिक उत्पादन पहले से हो रहा है। वहीं कम खोज वाले श्रेणी-दो और तीन बेसिन के लिए कंपनियों से केवल मौजूदा दर पर रॉयल्टी ली जाएगी। इसमें कहा गया है कि जमीन और उथले जल क्षेत्र में स्थित ब्लॉक में चार साल तथा गहरे जल क्षेत्र में अनुबंध की तारीख से पांच साल के भीतर उत्पादन शुरू किया जाता है तो रियायती दर से रॉयल्टी देनी होंगे।दो दशक पहले हुई थी बोली की शुरुआत: सरकार ने 1999 में ‘नई खोज लाइसेंसिंग नीति’ (नेल्प) के तहत तेल एवं गैस ब्लॉक के लिए बोली आमंत्रित करने की शुरुआत की थी। इसमें ब्लॉक उन कंपनियों को आवंटित किए जाते थे जो अधिकतम कार्य की प्रतिबद्धता जताती थीं। लेकिन कंपनियों को उन क्षेत्रों में खोज तथा अन्य कार्यों पर आने वाली अपनी लागत निकलने के बाद लाभ को सरकार के साथ साझा करना होता था।दो साल पहले भाजपा सरकार ने इस नीति के स्थान पर हाइड्रोकार्बन खोज एवं लाइसेंसिंग नीति (एचईएलपी) को पेश किया। इसमें विभिन्न स्तर की कीमत एवं उत्पादन के आधार पर अधिकतम राजस्व की पेशकश करने वाली कंपनियों को ब्लॉक आवंटित करने का प्रावधान था। एचईएलपी की नीति भी उत्पादन बढ़ाने या नए निवेशकों को लाने में विफल रही।
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सरकार ने तेल एवं गैस खोज क्षेत्र में निजी और विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए इससे जुड़ी नीति में अहम बदलाव किए हैं। नई नीति के तहत सरकार नए एवं कम खोजे गए क्षेत्रों में हाइड्रोकार्बन उत्पादन पर संबंधित कंपनी से लाभ में हिस्सा नहीं मांगेगी। हर तरह के बेसिन के लिए एक समान अनुबंध वाली दो दशक पुरानी नीति में बदलाव करते हुए नई नीति में अलग-अलग क्षेत्रों के लिए अलग-अलग नियम बनाए गए हैं। इसके तहत पहले से उत्पादन वाले क्षेत्रों और नए क्षेत्रों के लिए नियम अलग-अलग रहेंगे। आधिकारिक अधिसूचना के अनुसार उत्पादकों को भविष्य में बोली के दौरान तेल एवं गैस के लिए विपणन और कीमत (मार्केटिंग एंड प्राइसिंग) के मामले में आजादी होगी। इस प्रक्रिया में इस बात से कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा कि बेसिन कैसा है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 28 फरवरी को नियम में बदलाव को मंजूरी दी थी। इसमें कहा गया है कि भविष्य में सभी तेल एवं गैस क्षेत्र या ब्लॉक का आवंटन प्राथमिक रूप से खोज कार्यों को लेकर जताई गई प्रतिबद्धता के आधार पर किया जाएगा।नए नियम के तहत कंपनियों को श्रेणी-एक के अंतर्गत आने वाले सेडीमेंटरी बेसिन से होने वाली आय का एक हिस्सा देना होगा। इसमें कृष्णा गोदावरी, मुंबई अपतटीय, राजस्थान या असम के क्षेत्र शामिल हैं, जहां वाणिज्यिक उत्पादन पहले से हो रहा है। वहीं कम खोज वाले श्रेणी-दो और तीन बेसिन के लिए कंपनियों से केवल मौजूदा दर पर रॉयल्टी ली जाएगी। इसमें कहा गया है कि जमीन और उथले जल क्षेत्र में स्थित ब्लॉक में चार साल तथा गहरे जल क्षेत्र में अनुबंध की तारीख से पांच साल के भीतर उत्पादन शुरू किया जाता है तो रियायती दर से रॉयल्टी देनी होंगे।दो दशक पहले हुई थी बोली की शुरुआत: सरकार ने 1999 में ‘नई खोज लाइसेंसिंग नीति’ (नेल्प) के तहत तेल एवं गैस ब्लॉक के लिए बोली आमंत्रित करने की शुरुआत की थी। इसमें ब्लॉक उन कंपनियों को आवंटित किए जाते थे जो अधिकतम कार्य की प्रतिबद्धता जताती थीं। लेकिन कंपनियों को उन क्षेत्रों में खोज तथा अन्य कार्यों पर आने वाली अपनी लागत निकलने के बाद लाभ को सरकार के साथ साझा करना होता था।दो साल पहले भाजपा सरकार ने इस नीति के स्थान पर हाइड्रोकार्बन खोज एवं लाइसेंसिंग नीति (एचईएलपी) को पेश किया। इसमें विभिन्न स्तर की कीमत एवं उत्पादन के आधार पर अधिकतम राजस्व की पेशकश करने वाली कंपनियों को ब्लॉक आवंटित करने का प्रावधान था। एचईएलपी की नीति भी उत्पादन बढ़ाने या नए निवेशकों को लाने में विफल रही।
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